Sunday, September 8, 2019

श्री कृष्ण
कृष्ण वासुदेव प्रभु अब तो पधारिये
उदारता की निर्झरी दिग दिग उतारिये
                कर्मयोगी योगेश्वर हृदय विराजिए
                गोपियों की प्रतीक्षा का अंत डारिये
               भक्ति विव्हल अश्रु मुक्तमाला रचे
                 पावन सरित दर्शन पिपासा बुझे
हे रणछोड़ अवतार भूल न जाइये ,,,,,
                 कान्हा जगत में है हलचल मची
                 किसने ये षड्यंत्र ये योजना रची
                 कंसों दुर्योधनों की गणना कठिन
                 बालिका किशोरियां भयभीत निशदिन
अत्याचार दुराचार समूल नाशिये,,,,,
                  कदम्ब वृक्ष आपके विलोप हो गए
                  गोवर्धनों की गात में छिद्र हो गए
                  वसुंधरा के अश्रु भी वाष्प बन गए
                 विस्तृत नभ के पाश में पाषाण बन गए
नष्ट भ्रष्ट संसार पर अवरोध डालिये ,,,,,,,,
                                    स्वरचित  मौलिक
                                     पूनम सक्सेना
ब्रजराज ,,,,,जय कन्हैया लाल की
उठो उठो ब्रजराज कुंवर
भोर उतर आई
हर्षित भये ब्रज के वासी
देख देख अरुणाई
                       मैना बोली बुलबुल बोली
                       गौरैया चहकन लगी
                       डाली भयी पल्लवित कुसुमित
                        बयार महकन लगी
गैया बोली बछड़ा रांभा
जीव कोलाहल करें
दाना पंछी हरित तृण गोधन
गोपी दुहन करें
                       मैया हिल हिल दधि मथे
                        माखन ढेर धरे
                        कान्हा इत उत शीश हिलावे
                         नयना ज्योति भरे
मुख धो लो जमना जल कान्हा
ब्रज में प्राण भरे
गोरस उदर धरो मन मोहन
लोभी नवनीत बड़े
                 कर बद्व प्रणाम बंधु परमेश्वर
                 पालक, रक्षक हे योगेश्वर
     
                             
                               पूनम सक्सेना
                               स्वरचित , मौलिक
शिक्षक की कामना
आओ हे जग के कर्णधार
माँजो स्वविवेक बुद्धि विचार
                        ग्रहण करो तम से प्रकाश
                        जलूँगा जब तक न पूर्ण ह्रास
झेलूंगा झंझावात बनो तुम अन्य की छाया
ग्रहण करो तुम मुझ गुरु वृक्ष की छाया
                        नही सूखने दूंगा विद्या का निर्झर
                        जब तक न हो जाओ तुम आत्मनिर्भर
बनो सबल तुम सूर्य पुंज की शक्ति दूंगा
करो निर्बल का संरक्षण स्वयं को मिटा दूंगा
                     नही चिंता अपने मिटने की प्रतिनिधि
तुम मेरे हो
                    दुरुपयोग न करना शिक्षा का सुनाम
निधि तुम मेरे हो
                           पूनम सक्सेना
                    स्वरचित ,  मौलिक
दिवंगत पिता का स्मृति बोध
मैं निद्रा मग्न हुआ ,एक स्वप्नन घटित हुआ
एक विशाल वटवृक्ष प्रकट हुआ
अरे!मेरी माँ ,,,,, जननी का अस्तित्व दृष्ट हुआ
मेरा परिवार, भ्रातृ भगिनी का उद्गार
कष्ट में भी हर्ष का न पारावार
संभव हुआ प्रेम वृष्टि , विश्वास दृष्टि के कारण
एक छत्र था सुरक्षा का किया धारण
मैं अनभिज्ञ! हर्ष ने किया मेरा वर्णन
मेरा कुटुम्ब , मेरी शरण ,मेरा आवरण ज्ञात नही था अब तक
ज्ञात हुआ ,अदृश्य आत्मसात हुआ
जागी मनीषा , नेत्र खुले भोर में
वास्तविकता पायी ,,,,अवगुंठित एक डोर में
           मेरे पिता की डोर थी
माता इस रेशम रज्जु का प्रथम छोर थी
जिसने किया आवृत, सुरक्षित ,स्नेहित
जननी की निकटता ने दिया न भान
पिता का होता आकाश से मान
  मैं कृतज्ञ हूँ पिता का
अब नही संसार मे उपस्थित
मेरी श्रद्धांजली जनक को!
          कोटि प्रणाम कोटि प्रणाम
                       मौलिक
                         स्वरचित
                    पूनम सक्सेना
मोबाइल फोन
मेरा एक मोबाइल फोन था                               
           वही मेरा क्रिकेट फुटबॉल था
मेरा मोबाइल मुझसे रुठ गया
           रिश्तों से ज्यो नाता टूट गया
बेटी ने 4 G मोबाइल दिलाया
           संसार से मुझे जुड़वाया
बेटी ने F B पर अकाउंट बनाया
          मेरे सँग बचपन का फोटो लगाया
मैंने अपना एलबम निकाला
       युवा वयस का फोटो निकाला
बड़े उत्साह से फोटो डाला
          जैसे अपने बुढ़ापे को टाला
सिर पर धरती उत्साह बड़ा है
            चरणों के नीचे आकाश पड़ा है
फोटो पर आने लगे कमेंट हैं
            बहन भाई जीजा भाभी सभी फ्रेंड हैं
बहनो ने लिखा भूचाल आ गया है
          आपका फोटो छोटी बहनो को लजा गया है
भाइयों ने लिखा रुक रुक कर
          बहन मिला करेंगे फेसबुक पर
भाभियो के भी दिल जल रहे हैं
           दीदी आप इतनी सुंदर तो नही हैं
बेटो ने भी पूछा लिख के
           माँ ये दर्शन हैं किस युग के
दामादों की आईं टिप्पणियाँ
           झिंझोड़ डालीं रिश्तों की कड़ियाँ
माँ जी आपका क्या है इरादा
            हिला डाली सारी मर्यादा
पति सीधे सादे हैं कोई होड़ नही है
              आभासी दुनिया से उनका जोड़ नही है
F B पर आती हैं याचिकाएँ
             रहें मूक कहतीं हमे मित्र बनायें
नवीन मित्रो से हो गया परिचय
            बिखरी सखियों का होगया संचय
एक सज्जन ने लिखा कैसी हैं आप
            मैन लिखा अच्छी हूँ भाई साहब
भाई आग बबूला,,,,,ये क्या ट्रेंड है
            फेसबुक पर हम केवल फ्रेंड हैं
मेरे तनय वयस युवा ने लिखा
            हाई,,,,, क्या कार्यक्रम है आज शाम का
एक दिन मोबाइल जोरो टिन टिनाया
              मैने बड़ी आशा से उठाया
फोन पर थे अपरिचित फेसबुकिये
          परसों से कॉल कर रहा उठाया कीजिये
एक सज्जन का मैसेज,,,,,
                    क्या करती रहती आप
नाती पोते वाली हूँ ,,,
                   समय कम है भाई साहब
क्या कहती हैं,,,,, ऐसे कैसे चलेगा
              समय तो निकलने से निकलने से निकलेगा
सुदूर परिचितों से जुड़ने को है
                             मोबाइल अच्छा संयोजक
अवंछितो को कैसे झेलूँ ,,,
                        मन में है बड़ा असमंजस
                            मौलिक
                             पूनम सक्सेना
मैं माँ हूँ!
मेरे घर आई एक नन्ही परी
                     सोने की छत पर चांदी के रथ पर
मैं खड़ी ,वो आगे बढ़ी, मैं जगी
                     देखा ,मेरे अंक से लगी मेरी सुता मेरी
                       सोनपरी
नेह नगरी मैं लपक गयी
                      गरिमा गगरी छलक गयी
सुख सागर में ढलक गयी
                     मैं माँ बनी
ओ,  मेरा अंश मेरा वंश मेरी जलपरी
वो कुनमुनायी ,कसमसायी ,
                    मैं नेह निद्रा में पगी न समझ पायी
गर्व भरी अकुलायी, पड़ी दिखलायी
                   क्षुधातुर पिपासु, मेरी नील निर्झरी
उर उखड़ ममत्व घुमड़ ,क्षीर धार उमड़
                 चली , मिली मुख्यद्वार गयी उदरागार
हुई ,दीप्त तनया तृप्त, शांत
                  शनः शनः स्वप्न लोक चली
माँ
ओ, जननी,शून्य विचारिणी   चिरस्मरणी
हमारा मनप्राण करती भान व्यथित संतान
रखती मान करती समाधान
लगा पण प्राण
अपनी धन धान्य मौन वान्य
हमारी मान्य
प्रसन्न वदना उदार मना
साहस घना
स्नेह वर्षा, ममत्व दर्शा,देती
बाल हर्षा
जग चकित,करती प्रभित न
थकित श्रम स्थापित
कर स्मरण प्रभु चरण अटल
जन्म मरण
पायी अंत गति सत्य सती
दे  हमको सुमति
            ओ हम सब की माँ
-----पूनम सक्सैना द्वारा रचित .....
(मेरी बड़ी दी)
बिन्नी एवं गौरव जी को
       शुभकामनाएं
बहन आपकी शुभकामनाएं चाहते हैं
आपसे प्रीति भोज मांगना चाहते हैं
       आपके साथ रहना चाहते हैं
       आपके हर्ष में बहना चाहते हैं
ये अनुरोध  अकारण नही है
उन्नति आपकी कुंज डारन रही है
        व्योम विस्तृत फैलता रहा है
        जीवन तारा जलता रहा है
अर्णव सी कीर्ति चतुर्दिक
आशीष सबका रहे हार्दिक
             आपका गौरव मान रहे
            चतुर्दिक सम्मान रहे
आराधना से शेष महेश की
कीर्ति रहे सन्तोष सुरेश की
          जीवन धारा चलती रहे
          तारा डाली फलती रहे
पानी
मैं घर से निकला ,गली में
पानी मे फिसला
मैने टोह में इधर उधर आंख फिराई
हम कर रहे हैं घर की धुलाई
मैं फिर आगे चला, तेज फुहार आयी
मैने इधर उधर देखा,       हम कर रहे
गमलो की सिंचाई
मैं किनारे से बाहर हो गया
सिर पे बौछारों का राज हो गया
मैने इधर उधर आंख फिराई
हम कर रहे छत की धुलाई
लौट वापस घर को आया
पत्नी ने दुखड़ा सुनाया
आज तो बड़ी परेशानी
पानी वाला नही लाया पानी
खाने को लेट हो रहा
मुन्नू भूखे पेट सो रहा
मैने अपने को बहुत दबाया
पर बड़ा क्रोध आया
धीरे बोला क्या पानी वाला नही आया
देखो पानी ने मुझे नहलाया
सब ओर पनियाई पनियाई
घर धुला छत नहाई हुई पौधों की धुलाई
हो गया जल मटियाला
लाये कहाँ से पानी वाला
                    पूनम
हम सब श्रमिक हैं
  प्रेरक पंक्ति --
मई दिवस की याद आयी
सर्वप्रथम  अपने को दी बधाई
(  मेरी बहना  )
मुझे भी मेरी याद आयी
क्या कोई मुझे देगा बधाई
नही
बेटी आएगी कॉलेज से
माँ भूख लगी है बड़े जोर से
माँ जल्दी कुछ बना दो खाऊँगी
अभी आती हूँ पहले नहाउंगी
मैं उसकी सुध लेती हूं
फिर आपसे कुछ कहती हूँ
लेटना चाहा किया स्वयं वादा
हो  न पाया काम था ज्यादा
बेटी मुँह बना बना कर खा रही है
मेरी मेहनत को पलीता लगा रही है
आता होगा बेटा
शरीर से अकड़ा ऐंठा
जब से वो फैक्ट्री गया है
बड़ा हुआ आधा रह गया है
बस की देर सवेर
मेज पर कागजों का ढेर
मालिक का आदेशात्मक स्वर
कुछ गलती न हो जाये रहता डर
शाम हुई चलना अब घर
धड़ धड़ धड़ धड़ भड़ भड़
मैं भूली हूँ एक श्रमिक को
घर के एक महान कार्मिक को
श्रम बिंदु से पूर्ण लथ पथ
घर आएगा झपट झपट झट
वो मेरे बच्चों का पिता है
उसको भी घर की चिंता है
अलग अलग श्रमिक कथा है
सबकी अपनी अपनी व्यथा है
शुभी बेटी को जन्म
दिवस की शुभेच्छा
शुभ शुभ शुभ शुभ शुभी शुभी
प्रेम से भेंटें अभी अभी
मिलती तो हो कभी कभी
घुल मिल जाती तभी तभी
तुम पर प्रेम उमड़ता है
घी बोलो में चुपडता है
प्रेम अमित पापा से है
श्रद्धा भी माता से है
अनुजा से है लगाव बड़ा
पोथी से नि सन्देह बढ़ा
बढ़ो शिक्षा दीक्षा में
साहस भरो परीक्षा में
हम सब करें यही कामना
नैतिकता का हाथ थामना
मेरी बिटिया .......

आया सावन याद आ गयी मुझको बिटिया तेरी 
कैसे भूले बिटिया मुझको मधुर स्मृति तेरी 

फूले नीम ,निबौली फूली
पिछले सावन मेरी बिटिया अंगना झूला झूली

गली -गली घूमी सज धज कर ,सावन के मेले में
झूम -झूम कर समां गयी थी ,सखियों के रेले में

कोयल कुहके नाचे मोर
मन विहग उड़ा बिटिया की ओर

खीचे -भीचे नेह की डोर
पर हमने ही भेजी बिटिया ,लगा प्रयास और जोर

नैनो में है छवि बिटिया की ,पढने गयी गन वेश में
पति निकेतन ठहरी बिटिया ,मन तो होगा देश में

भीगी धरती, भीगा अम्बर ,भीग गया घर - द्वार
भीगे पल -पल , पुलक -पुलक मन, भीगे बारम्बार

आया झोखा याद का ,चहके मन के तार
कैसी होगी बिटिया मेरी , मन पूछे बार -बार

छोड़ अंदेशा ,भेज संदेशा तुरंत बुलाओ बिटिया को
खीर ,पूरी घेवर लाकर कर जिमाओ पति संग बिटिया को 
झीलों की नगरी में देखा -----
झीलों की नगरी में देखानीलकमल है खिला हुआ

भीलों की गगरी में देखा जल मेहनत का मिला हुआ
सडकों की पटरी पर देखा एक नगर है बसा हुआ
सपनों में बचपन को देखा वर्तमान को भुला दिया
चांदी के पलने में देखा माँ ने बचपन सुला दिया
वर्षा में बदली को देखा आसमान को धुला दिया
छोनो को जंगल में देखा बस बचपन को बुला लिया
फूलों को जंगल में देखा बस मुखड़े को खिला दिया
हंसों को पानी में देखा मस्ती का मद पिया हुआ
चांदनी को रजनी में देखा प्यार गाल से छुआ दिया
पंचों उंगली एक मुट्ठ में झोंपड़ा भी किला हुआ
आँख खोल कर जाग को देखा तन मन को कुछ हिला गया
बाल आकांक्षा-------
झिलमिल तारे झिलमिल तारे 
चमके -चमके चंदा प्यारे 
आसमान में रहते सारे 
नहीं आते तुम पास हमारे , 
साथ नही तुम खेलोगे ,
मेरा गुस्सा झेलोगे
दीदी मुझे बताती है ,
जो मैडम उसे पढ़ाती है
दादाजी हैं लगे हुए ,
संग साथी के जुटे हुए
पास तुम्हारे आने को ,
और घमंड मिटने को
दादाजी के साथी कई
पहले भी जाते थे
कभी -कभी वो यान रास्ते में ही खो जाते थे ..
लेकिन अब ऐसा नहीं होगा ,
दादाजी का कण्ट्रोल होगा
दादाजी के पास है
एक बड़ी सी दूरबीन
दादाजी के साथी देखे
चंदा तारो के सब सीन
मैं पढ़ लिख कर बड़ा बनूँगा
दादाजी की हेल्प करूँगा
नए यंत्र की खोज करूँगा
और एक दिन तुम्हे मिलूँगा
मेरी नन्ही परी 

मेरे घर आई एक नन्ही परी 
सोने की छत पर ,चाँदी के रथ पर 
मै खड़ी,वो आगे बढ़ी ,मै जगी 

देखा ! मेरे अंक से लगी मेरी सुता
मेरी सोनपरी .
नेह नगरी मै लपक गई
गरिमा गगरी छलक गई
सुख सागर में ढलक गई
मै माँ बनी ,ओ !मेरा अंश ,मेरा वंश
मेरी जलपरी,
वो कुनमुनाई कसमसाई
मै नेह निद्रा में पगी न समझ पाई
गर्व भरी ,अकुलाई ,पड़ी दिखलाई
क्षुधातुर पिपासातुर मेरी
नील निर्झरी,
उर उखड़ ममत्व घुमड़ क्षीरधार उमड़
चली मिली मुखद्वार गई उदारागार
हुयी दीप्त तनया तृप्त शांत शनाह शनाह शनिः
स्वप्न लोक चली,
माँ की पुण्य तिथि पर श्रधांजलि -------------

माँ 
ओ जननी ,शून्य विचरनी, चिर स्मरणी,.
हमारा मन प्राण ;करती भान ,व्यथित संतान .
रखती मान ,करती समाधान ,लगा पण -प्राण .
अपनी धन -धान्य ,मौन वान्य , हमारी मान्य .
प्रसन्न वदना , उदार मना ,साहस घना .
स्नेह -वर्षा ,ममत्व दर्शा ,देती बल हर्षा .
जग चकित ,करती प्रभित , ,श्रम्स्थापित
कर स्मरण , प्रभु चरण ,अटल जन्म - मरण ,
पाई अंत गति ,सत्य सती , दे !हमको सुमति ,
ओ हम सबकी माँ
मेरी दिवंगत बहना----

ओ मेरी बहना ',सब कुछ कहना,रस्ता देखें मेरे नयना.

तू मुझसे क्यूँ रूठ गयी,कौन देश को लपक गयी.

बहना ढूंढें चहुँ ओर,तू कहाँ है दुबक गयी.

छोने आस निराशा हैं,फिर भी मन में आशा है.

कभी पुनर्मिलन होगा क्या,चिंतें मन में सुत तनया.

सुता धीर अधीरी सी,अनुज की नेह भंभीरी सी.

तू नहीं! असार संसार ,पिता में दीखे माँ का प्यार.

तेरी मधुर स्मृति,नहीं बन सकी विस्मृति.

करती याद तेरे आल्हाद, माँ भी पहुंची तेरे पास.

हमारी तेरी छुपा छुपायी ,अब तक तो तू हाथ न आई .

स्वप्न याद आते बचपन के,चन्द्र शीतला सूर्य तपन के.

तुझे ईश ने दिया विस्थापन,मन मेरे एक शूल चुभन.

अब तू नहीं तेरी बातें हैं, यादों भरी दिवस रातें हैं.

अब नहीं तेरा मिलन होगा, रीता रीता चिंतन होगा.

ओ सुरवास वासिनी,शांत,सुमधुर,सुभाषिनी!

ईश तुझे दे शान्ती,शान्तात्मा!

यही तेरी बहनों की शुभेच्छा शुभकामना