Sunday, September 8, 2019

दिवंगत पिता का स्मृति बोध
मैं निद्रा मग्न हुआ ,एक स्वप्नन घटित हुआ
एक विशाल वटवृक्ष प्रकट हुआ
अरे!मेरी माँ ,,,,, जननी का अस्तित्व दृष्ट हुआ
मेरा परिवार, भ्रातृ भगिनी का उद्गार
कष्ट में भी हर्ष का न पारावार
संभव हुआ प्रेम वृष्टि , विश्वास दृष्टि के कारण
एक छत्र था सुरक्षा का किया धारण
मैं अनभिज्ञ! हर्ष ने किया मेरा वर्णन
मेरा कुटुम्ब , मेरी शरण ,मेरा आवरण ज्ञात नही था अब तक
ज्ञात हुआ ,अदृश्य आत्मसात हुआ
जागी मनीषा , नेत्र खुले भोर में
वास्तविकता पायी ,,,,अवगुंठित एक डोर में
           मेरे पिता की डोर थी
माता इस रेशम रज्जु का प्रथम छोर थी
जिसने किया आवृत, सुरक्षित ,स्नेहित
जननी की निकटता ने दिया न भान
पिता का होता आकाश से मान
  मैं कृतज्ञ हूँ पिता का
अब नही संसार मे उपस्थित
मेरी श्रद्धांजली जनक को!
          कोटि प्रणाम कोटि प्रणाम
                       मौलिक
                         स्वरचित
                    पूनम सक्सेना

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